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इस तरह लेता है बच्चा जन्म | समझे पूरी प्रक्रिया...

Nov 17 2018

Posted By:  Sandeep

शादी जीवन का सबसे सुखद अनुभव होता है | क्योंकि जहाँ एक ओर दो परिवारों का आपस में मिलन होता है वही दूसरी ओर दो दिलों का भी मिलन होता है | इन्ही दो दिलों के मिलने से नई संतति का जन्म होता है |


आज हम आपको बताएंगे की बच्चा गर्भ में कैसे बनता है और उसके बाद कौन-कौन सी प्रक्रिया होती है | जब कोई महिला और पुरुष आपस में सम्बन्ध बनाते है तो पुरुष के लिंग से सी'मन निकलकर महिला के गर्भाश्य में जाता है | इसी प्रकार महिला के मासिक चक्र के दौरान एग उत्त्पन्न होता है | यह एग महिला के फ़ेलोबियन नलिका में चला जाता है |

महिला के गर्भाश्य में क्रमानुकुंचन गति होती है जिसके द्वारा धातु फ़ेलोबियन नलिका में पहुंचती है | इसके पश्चात् अंड और शुक्राणु के मिलने से निषेचन की प्रक्रिया होती है | इसके बाद युग्मनज का निर्माण होता है | युग्मनज गति करता हुआ गर्भाश्य में आकर स्थापित हो जाता है | इस अवस्था में इसे भ्रूण कहते है | इस प्रक्रिया को भ्रूण प्रत्यारोपण कहते है | इस समय से लेकर शिशु के जन्म तक की अवधि को गर्भावस्था कहते है | 

सबसे पहले भ्रूण में तंत्रिका तंत्र का विकास होता है | इसके पश्चात् लिंग निर्धारण होता है | दूसरे महीने में नाल ( प्लेसेंटा ) बनने लगती हैं | इसके बाद अंगुलिया बनने शुरू हो जाती है | फिर, लीवर और कीडनी का विकास होना शुरू हो जाता है | जब गर्भ में भ्रूण तीन महीने का होता है तो उसका वजन 190 ग्राम के आस पास हो जाता है | इस समय शिशु के शरीर में मूवमेंट होना शुरू हो जाता है |


जब शिशु लगभग छ महीने का हो जाता है तो इतना बड़ा हो जाता है की यदि कोई महिला के पेट के कान लगाकर बच्चे की आवाज सुने तो उसे बच्चे का आभास हो जाता है | जब बालक आठ महीने के आसपास हो जाता है तो अपना अंगूठा चूसने लगता है | इसके बाद शिशु अपने एक निश्चित समय पर जगता है और निश्चित समय पर ही सोता है |

जब शिशु नौ महीने का हो जाता है तो उसका वजन 3.5 किलो तक हो जाता है | लेकिन विषम परिस्थितियों में इसका वजन 2.5  भी किलो हो सकता है | जब शिशु का विकास पूर्ण रूप से हो चूका होता है तो सबसे अंत में नाख़ून बनते है | क्योंकि यदि नाख़ून पहले बन जाये तो शिशु के गर्भ में हाथ-पाँव मारने के दौरान महिला के गर्भाश्य में ब्लडिंग हो सकती है | 


इसके बाद एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन हार्मोन के द्वारा गर्भ में दर्द होना शुरू हो जाता है | इस दर्द को "लेबर पेन" कहते है 
यदि किसी महिला के नौ महीने पूर्ण होने के बाद भी लेबर पेन नहीं हो रहा है तो उस महिला के इंजेक्शन के द्वारा "लेबर पेन" करवाया जाता है | महिला में शिशु के जन्म के बाद रिलेक्सीन हार्मोन का स्त्रवण होता है | इसके पश्चात् महिला काफी रेलक्स महसूस करती है | इस प्रकार शिशु गर्भ में बनता है और इसके बाद उसका जन्म होता है |
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